November 10, 2010

अहमकपना


आज बैठा अपने उन दिनों को याद करते हुए तुम्हें भी याद कर रहा हूँ. जिंदगी के दोनों हिस्सों को जोड़ कर देखना चाह रहा था. कई अहमक से सवाल परेशान किये जाते हैं. जैसे कि क्या तुम उस समय भी मेरे साथ रहती, जब नौकरी और कम तनख्वाह जैसी परेशानियों से जूझ रहा था? क्या तुम उस समय भी मेरे साथ रहती जब तन्हाइयों कि भी इंतहा हो चली थी? तन्हाई जिंदगी ना चलने देती थी, और न रूकने देती थी. एक एक कर सभी लोग अपने जीवन में मसरूफ होते जा रहे थे और मैं भीड़ में अकेला.

याद है, तुम्हारे जाने के बाद जब तुमने अपना मोबाईल नंबर यकायक बदल डाला था. मोटोरोला का वह टाटा इंडीकॉम वाले नंबर के बदल जाने पर बेहद ताज्जुब के हालत में था, फिर पता चला तबियत नासाज़ होने कि वजह से अस्पताल में कई दिनों तक थी और वहीं से वह गायब हो चला था. और बाद में कई दिनों तक एहसास-ए-जुर्म सालता रहा मुझे, के जब तुम्हें जरूरत थी तब कुछ ना कर सका. यह नहीं सोचा के तुमने भी तो साथ ना दिया कभी, महान बनने का शौक चर्राया था. यह भी याद आ रहा है के उस नंबर को कई सालों तक संभाल कर अपने हर नए मोबाइल में जोड़ता जाता था, पता था कि तुम उसका साथ भी छोड़ चुकी हो. अब इसे मेरा अहमकपना ना कहोगी तो फिर क्या कहोगी?

आज जब फिर से ऐसे दिमागी हालात से गुजर रहा हूँ जब तुम्हारी बेहद जरूरत महसूस हो रही है तो फिर से तुम्हारा ही आँचल ढूंढ रहा हूँ. अब इसे मेरा अहमकपना ना कहोगी तो फिर क्या कहोगी?

मगर यकीन जानो मेरा, तुम अब भी बहुत याद आती हो!!

1 comment:

क्या मिलेगा यहाँ कुछ लिखकर? तू तो ठहरा रमता जोगी, आगे बढ़!

Note: Only a member of this blog may post a comment.