November 17, 2010

चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस


कुछ रोज से जेहन में जलजला सा उठा हुआ है. कई तूफ़ान दस्तक दिए जा रहे हैं.. और हम हैं कि अपने मन की बात मन में ही दबाए माँ-बाबूजी/अब्बू-अम्मी(जब जो जी में आता है बुला लेता हूँ सो दोनों ही लिख दिया) को ही हिदायत देकर उन्हें मजबूत बनाने पर लगा हुआ है. उम्र के इस मोड़ पर कुछ और जूझने को दिमागी तौर से तैयार नहीं था, मगर ज़िन्दगी क्या है? इसे तो चलते ही जाना है, आप तैयार रहें, ना रहें, इसे कोई फर्क नहीं पड़ता! मजबूरन खुद को तैयार करने के साथ-साथ घर के लोगों को भी तैयार करना, आज चार दिन बाद उतना कठिन नहीं जान पड़ता है जितना उन दिनों लग रहा था.

खैर, "चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस"!!!!!!

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