June 29, 2011

घुप्प अँधेरा और मौत!


मैं अपनी मौत का दिन खुद तय करना चाहता हूँ| बेहद दर्दनाक मौत| एक ऐसी मौत जिसमें आप तड़प-तड़प कर मरते हैं और किसी को कोई खबर नहीं होती है, खबर इसलिए नहीं होती है क्योंकि आपकी कोई खबर लेने वाला नहीं होता है| वह मौत और भी तकलीफदेह तब हो उठती है जब आपके पास वह हर साजोसामान होता है और फिर भी आपकी लाश को नगपालिका ठिकाने लगाए| गरीबों के लिए भावनात्मक रूप से वह उतनी तकलीफदेह नहीं होती होगी, क्योंकि मरते समय कोई अपना तो उसके पास होगा, सिर्फ पैसे की कमी से बाकी का काम नगरपालिका को करना पड़ेगा| मगर वहीं जब आप पैसे से सक्षम हों और ऐसी मौत आये!!

मैं बिलकुल ऐसी ही मौत मरना चाहता हूँ और वो भी बिलकुल घुप्प अँधेरे में!