October 2, 2011

किसी नजर को तेरा...कहाँ हो के ये दिल बेक़रार आज भी है

मैं अब भी जब कभी तुम्हे याद करता हूँ तुम्हारी वही बड़ी सी आश्चर्य से गोल आँखें याद आती है जब तुमने मुझे बताया था कि तुम्हारे घर भी कंप्यूटर आ गया गया है.. जाने क्यों तुम्हारा वह चेहरा ही आँखों के सामने आता है जबकि उसके बाद अनगिनत दफ़े तुम्हें देखा है..

सच कहूँ तुम्हारी तलाश में अब तक भटक रहा हूँ.. भ्रम में नहीं जी रहा हूँ, पता है की तुम मेरी तलाश कब की बंद कर चुकी हो, फिर भी.. जाने क्यों..

September 26, 2011

एक दिन की मौत

मौत तो मौत होती है साहब, क्या एक पल और क्या सौ दिन! लेकिन फिर भी, यदि मौका मिले सिर्फ एक दिन के लिए मरने का तो? क्या क्या हो सकता है? किस किस को फर्क पड़ेगा? दुनिया किसी के बिना नहीं रूकती है, एक कड़वा सत्य, और मेरे बिना भी नहीं रूकेगी, The show must go on! इसका ज्ञान होने के बावजूद ऐसे विचार? एक दिन की मौत? और फिर अगले दिन आकर देखने का मौका भी, कि देखो मैं सोचता था कि शायद इसे, इसे और इसे फर्क पड़ेगा मगर यहाँ तो किसी को इतना भी फुर्सत नहीं की एक घंटा भी शोक मना सके.. और फिर एक गहरा अवसाद, हमेशा की मौत मरने की इच्छा.. तो क्यों सिर्फ एक दिन, एक पल के लिए ही मरा जाए? एक ही झटके में पूरी मौत ही क्यों ना? रोज-रोज तिल-तिल कर मरने से तो अच्छा ही होगा ना!

मरने के बाद क्या-लय होगा? दफ्तर में एक मेल सर्कुलेट कर दिया जायेगा, जिसमें तारीफ़ के हर वह शब्द होंगे जिन्हें आप जीते जी पढ़ने के इच्छुक रहते हैं, मगर कम ही लोगों के साथ ऐसा हो पाता है.. "**** was a hard worker who always looking towards his goal" जैसी बातें रहेंगी..

हाँ उस दोस्त को बेबात परेशानी जरूर हो जायेगी जो साथ रहता है.. पता नहीं कितना मानसिक कष्ट होगा उसे पर शारीरिक कष्ट तो निश्चित रूप से तय है.. घर पर खबर पहुंचाना, किसी के मौत कि खबर कैसे पहुंचाई जाती है यह भी शायद उसे पता ना हो.. इधर पुलिस का चक्कर अलग से झेलना.. उफ्फ़.. चैन से तो मरा भी नहीं जा सकता है.. बेहतर है किसी ऐसे जगह जाकर मरा जाए जहाँ मेरी लाश को लावारिस घोषित करके ठिकाने लगा दिया जाए.. किसी को कोई परेशानी नहीं, कोई गम नहीं..

June 29, 2011

घुप्प अँधेरा और मौत!


मैं अपनी मौत का दिन खुद तय करना चाहता हूँ| बेहद दर्दनाक मौत| एक ऐसी मौत जिसमें आप तड़प-तड़प कर मरते हैं और किसी को कोई खबर नहीं होती है, खबर इसलिए नहीं होती है क्योंकि आपकी कोई खबर लेने वाला नहीं होता है| वह मौत और भी तकलीफदेह तब हो उठती है जब आपके पास वह हर साजोसामान होता है और फिर भी आपकी लाश को नगपालिका ठिकाने लगाए| गरीबों के लिए भावनात्मक रूप से वह उतनी तकलीफदेह नहीं होती होगी, क्योंकि मरते समय कोई अपना तो उसके पास होगा, सिर्फ पैसे की कमी से बाकी का काम नगरपालिका को करना पड़ेगा| मगर वहीं जब आप पैसे से सक्षम हों और ऐसी मौत आये!!

मैं बिलकुल ऐसी ही मौत मरना चाहता हूँ और वो भी बिलकुल घुप्प अँधेरे में!

January 15, 2011

तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

16 नवंबर 2006

तुम उस दिन सफेद कपड़े में आयी थी, मैं तुम्हें ऐसे देख रहा था जैसे कोई परी आसमान से उतर आयी हो। कालेज का आखिरी दिन होने के कारण से हम दोनों ही बेचैन थे। इस असमंजस में थे की पता नहीं अब मुलाकात हो ना हो। सभी कुछ खत्म होने के बाद हम भी अपने रस्ते चलने को तैयार थे, मगर कुछ वक्त एक दूसरे के साथ बिताने के इच्छुक भी। टहलते हुये निकल पड़े, कदम जितना धीमा पड़े इसके जतन में। एक आईस्क्रीम वाला दिखा और दोनों ने ही चोकोबार लिया। मैं उसे धीरे-धीरे खाने लगा और तुम उसे खाने का नाटक करते हुए अपनी आइसक्रीम भी मुझे खिलाने लगी। थोड़ा प्यार-मनुहार भी कुछ शरारतें भी। तभी कहीं से एक आवाज सी सुनाई देने लगी! "तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे!"

पहली बार ये अहसास हुआ की सच में मैं तुम्हें कभी भुला नहीं पाऊंगा। कभी नहीं। तुम आज भी मुझमें जिंदा हो, मेरे ख्वाबों में जिंदा हो। हर पल तुम मेरे साथ होती हो। कभी दोस्त बनकर!! कभी प्रेमिका बनकर!! कभी हितचिंतक बनकर!! तो कभी शत्रु बनकर!! हर पल में तुम्हें हजार बार जीता हूं!!

16 जनवरी 2004 कि एक घटना