January 15, 2011

तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

16 नवंबर 2006

तुम उस दिन सफेद कपड़े में आयी थी, मैं तुम्हें ऐसे देख रहा था जैसे कोई परी आसमान से उतर आयी हो। कालेज का आखिरी दिन होने के कारण से हम दोनों ही बेचैन थे। इस असमंजस में थे की पता नहीं अब मुलाकात हो ना हो। सभी कुछ खत्म होने के बाद हम भी अपने रस्ते चलने को तैयार थे, मगर कुछ वक्त एक दूसरे के साथ बिताने के इच्छुक भी। टहलते हुये निकल पड़े, कदम जितना धीमा पड़े इसके जतन में। एक आईस्क्रीम वाला दिखा और दोनों ने ही चोकोबार लिया। मैं उसे धीरे-धीरे खाने लगा और तुम उसे खाने का नाटक करते हुए अपनी आइसक्रीम भी मुझे खिलाने लगी। थोड़ा प्यार-मनुहार भी कुछ शरारतें भी। तभी कहीं से एक आवाज सी सुनाई देने लगी! "तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे!"

पहली बार ये अहसास हुआ की सच में मैं तुम्हें कभी भुला नहीं पाऊंगा। कभी नहीं। तुम आज भी मुझमें जिंदा हो, मेरे ख्वाबों में जिंदा हो। हर पल तुम मेरे साथ होती हो। कभी दोस्त बनकर!! कभी प्रेमिका बनकर!! कभी हितचिंतक बनकर!! तो कभी शत्रु बनकर!! हर पल में तुम्हें हजार बार जीता हूं!!

16 जनवरी 2004 कि एक घटना

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